हाल ही में उच्च शिक्षा एंव माध्यमिक शिक्षा के अन्तर्गत सचांलित सभी विद्यालयों में अध्यापकों एंव छात्र-छात्राओं की वेशभूषा को लेकर एक सराहनीय पहल की गई है, जिसे सिर्फ एक सरकारी आदेश न मानकर व्यवस्था में परिवर्तन के रूप में लिया जाना चाहिए। हम स्वंय को समाज के पथप्रर्दशक व सम्मानित दर्जे की वकालत करते हुए अन्य देशों के अनेकों उदाहरण चर्चा में व सोशल मीडिया पर प्रचारित करते रहते है, परन्तु क्या हम आत्मलोकन करने का कष्ट करते है की हम अपने दायित्वों के प्रति उसी प्रकार संजीदा है जैसे अन्य देशों के शिक्षक। समाज में सम्मान अधिकार पूर्वक नहीं प्राप्त किया जा सकता, सम्मान अपने कृतव्यों के श्रेष्ट निर्वहन, अपनी कार्यशैली एंव व्यवहार के आधार पर समाज से आदरभाव के रूप में प्राप्त होता है। ऐसे अनेकों शिक्षक समाज एंव सरकार द्वारा समय-समय पर सम्मानित किए जाते रहे है। कार्यशैली के प्रदर्शन में वेशभूषा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। एक स्थान पर अधिसंख्य लोगों की भीड मे वेशभूषा के कारण ही आप अलग चिन्हित किए जा सकते है। जैसे किसी अस्पताल मंे जाने पर चिकित्सक व अन्य सहकर्मी अपने वेशभूषा के कारण ही चिहिन्त किए जाते है। परन्तु कुछ लोग प्रत्येक निर्णय के विरूद्ध तर्क-वितर्क करने का मौका नहीं गवाना चाहते, चाहे उन्हें अपने कथनों के कारण हास्य का पात्र बनना पडे। इसकी महत्वपूर्ण बानगी देखने के लिए हाल ही के वेशभूषा संबंधी निर्णय पर कुछ शिक्षकों द्वारा दी जा रही प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट हो रहा है जबकि वेशभूषा अनुशासन का विषय है न कि खर्च का। वेशभूषा का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि यदि एक निर्धारित वेशभूषा के आधार पर शिक्षक को चिन्हित किया जाता है तो उसका असर दैनिक दिनचर्या में शामिल त्रुटियों व कार्यशैली प्रति भी सजग रहने मे सहयोगी होगा। वेशभूषा की महत्ता के बारे में एक प्रकरण का उल्लेख करना चाहता हुं कि कुछ समय पूर्व प्रचलित रामायण धारावाहिक में सीता का किरदार निभाने वाली एक अभिनेत्री जो कि पूर्व सांसद भी रही है उनका कथन था कि मैं पाश्चात्य शैली की वेशभूणा पहनना व ध्रुमपान करना पसंद करती थी परंतु अभिनित चरित्र के कारण समाज में लोग मेरे चरण स्पर्श करते थे तो मुझे आत्मग्लानि का अनुभव होता था इसी कारण मैनें पाश्चात्य शैली के परिधान व ध्रुमपान का परित्याग कर दिया।
ड्रैस कोड (वेशभूषा) को लेकर शिक्षकों के कुछ तर्क -
हमारी आपत्ति इस बात पर है कि यदि ड्रैस कोड लागू हुआ तो....
1- यह धोती-कुर्ता अथवा कुर्ता-पैजामा अथवा अन्य भारतीय पहनावे को अपनाने वाले शिक्षकों (जिनकी संख्या और परम्परा अंग्रजी करण के कारण विलुप्ति की कगार पर है) के साथ अन्याय होगा कि उनको भी अब अंग्रेजी पहनावा पैंट-कमीज स्वीकार करना पड़ेगा।
(जबकि ग्रामीण भारतीय संस्कृति में गुरु-शिक्षक का प्रथम द्रष्ट्या सम्मान पहचान उनके भारतीय पहनावे से होती है )...यदि इन भारतीय पहनावों को आप छूट दें तो सहर्ष स्वीकार है..
2- सेना में, पुलिस में और यहाँ तक कि स्कूल के बच्चो को भी ड्रैस सरकार कि तरफ से मिलती है क्या सरकार के पास इतना बजट है कि वह सभी शिक्षकों को ड्रैस दे सकें ? या वह शिक्षकों के पैसे से ही ड्रैस कोड लागू करेगी?
(500 रुपये तो केवल एक पैंट कमीज की सिलाई है कपड़े समेत 3-4 जोड़ी ड्रैस की लागत 6-7 हजार प्रति वर्ष होगी) जो कि आर्थिक रूप से एक और बोझ है ...
अतः इसका खर्चा ड्रैस कोड का शासनादेश देने वाली सरकार ही वहन करे....
विरोध करने वाले शिक्षकों से कुछ प्रश्न-
1- क्या आपके छात्र-छात्रा ड्रेस कोड धारण नहीं करते?
2- क्या देश के सैनिक ड्रेस कोड धारण नहीं करते?
3- क्या देश की पुलिस ड्रेस कोड धारण नहीं करती? वो भी मई जून मास में 50 डिग्री सैल्सियस तापमान में भी खाकी ड्रेस?
4- शिक्षकों आप तो क्लास थ्री में आते हो, क्या क्लास वन एनडीए, सीडीएस, आईपीएस ड्रेस कोड धारण नहीं करते?
5- क्या वकील एवं न्यायाधीश ड्रेस कोड धारण नहीं करते?
6- क्या आपके घर में जो पण्डित जी पूजा करने आते हैं वो क्या कोट, पेन्ट, टाई धारण करके आते हैं? क्या वो ड्रेस कोड धारण नहीं करते? क्या आप उनसे धोती कुर्ते की अपेक्षा नहीं करते?
7- आज की तिथि में 70 प्रतिशत से अधिक सरकारी शिक्षक प्राईवेट स्कूलों में पढाकर आते हैं जब आप 8-10 हजार की नौकरी करते थे प्राईवेट स्कूलों में तो क्या तब ड्रेस कोड नहीं धारण करते थे ?
8- आपका छात्र यदि कभी अभाव के कारण वर्ष में एक दिन भी निर्धारित ड्रेस में नहीं आ पाता है तो आप क्यों उस छात्र को घर भगा देते हैं या क्यों विद्यालय में उसको प्रताङित करते हैं ?
9- जो कह रहे हैं कि ड्रेस कोड नहीं अपितु शिक्षक पहुंचाइए, तो उनसे सवाल है कि जिन सुगम सरकारी स्कूलों में सारे पद भरे हुए हैं वो स्कूल परिषद् परीक्षाओं में कितनी बार सर्वोच्च स्थान पर आ गए हैं? सुगम स्थानों में ही सारे पद भरे हुए हैं और सुगम स्थानों में सारे प्राईवेट स्कूल फल फूल रहे हैं ऐसा क्यों?
शिक्षक मित्रो! इस दुनियां में हर विषय के तर्क तो कुछ ही लोगों के पास होते हैं लेकिन कुतर्क प्रत्येक व्यक्ति के पास होते हैं, इसीलिए हम कुतर्क न करें सरकार के प्रत्येक अच्छे कार्य की प्रशंसा करें एवं उसका अनुसरण करने का प्रयत्न करें ।
शिक्षक समाज का मेरुदण्ड है, शिक्षक समाज का दर्पण है शिक्षक यदि संस्कारी होगा, स्वयं अनुशासित होगा तो सम्पूर्ण समाज संस्कारी एवं अनुशासित स्वयं हो जायेगा, इसमें सन्देह नहीं है। प्रत्येक शुभ कार्य का प्रारम्भ विद्यालयों, छात्रों एवं शिक्षकों से ही हो। आप प्रबुद्ध श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों में आते हैं अतः किसी भी अन्य विभाग एवं व्यक्ति से अपनी तुलना करना स्वयं द्वारा अपना अपमान करना है।
मित्रो! शिक्षक को आज के समाज में अपनी भूमिका समझनी होगी, आप लोग चाहे स्वीकार न करें लेकिन शिक्षक अपना सम्मान स्वयं कम करते जा रहा है कहीं न कहीं शिक्षक अपने कर्तव्य से विमुक्त हो रहा है जिसका असर समाज में उसके सम्मान में भी दिख रहा है अतः निजी स्वार्थों का परित्याग करके एक स्वस्थ समाज के निर्माण एवं राष्ट्रहित के लिए कार्य करें स्वस्थ समाज के निर्माण में ही आपका सम्मान निहित है।
राजकुमार राणा (सम्पादक)
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