अंकों की दौड़़

इस वर्ष केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की बारहवीं के नतीजे विगत कुछ वर्षों से जारी रूझान के अनुरूप ही हैं, जहां बच्चों मे अंकों को लेकर प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। चूंकि 12वीं के बाद उच्च शिक्षा के दरवाजे खुलते है, लिहाजा पसंदीदा काॅलेज में दाखिले के लिए यह होड स्वभाविक है। सीबीएसई के नतीजों को ही देखें, तो पूरे देश में जिस छात्रा रक्षा गोपाल ने सर्वप्रथम स्थान हासिल किए हैं, उसे पांच में से तीन विषयों में सौ अंक मिले हैं और दो विषयों में उसके सिर्फ एक-एक अंक ही कटे हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, पिछले कई वर्षों में शिखर पर आने वाले बच्चों को कमोबेश इसी तरह के अंक मिले हैं; खास बात यह है कि रक्षा ने आट्र्स जैसे विषय के साथ यह कमाल कर दिखाया है। इतने अंक हासिल करना कोई मामूली बात नहीं है और यह नहीं भूलना चाहिए कि दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले विद्यार्थी भी उनसे थोडे ही पीछे है। किसी भी परीक्षा में मेधावी सूची आने वाले विद्यार्थी ऐसा प्रदर्शन करते ही हैं, मगर जिस तेजी से 95 फीसदी से ऊपर अंक प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या बढ़ रही है, क्या वह सिर्फ मेधा का विस्तार है; या फिर परीक्षाओं में अधिक से अधिक अंक हासिल करने को ध्यान में रखकर दी जा रही शिक्षा भी इसके लिए कुछ जिम्मेदार है? सीबीएसई और अन्य केंद्रीय बोर्ड के अलावा विभिन्न राज्यों के बोर्ड बारहवीं की परीक्षाएं आयोजित करते हैं, जिसमें संतुलन कायम करने के लिए माॅडरेशन जैसी व्यवस्था है, जिसे विवाद के बीच अदालती आदेश के बाद कायम रखा गया है। इसके बावजूद इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि अंकों की स्पर्धा का संबंध उच्च शिक्षा के बेहतरीन संस्थानों की कमी से भी है। इससे क्या कोई इन्कार कर सकता है कि अंकों को लेकर बढ़ती दौड के पीछे दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में दाखिला एक बड़ी वजह है, जहां बारहवीं में 95 फीसदी अंक हासिल करने वाले विद्यार्थी तक आश्वस्त नहीं हो पाते है कि उनके पसंदीदा काॅलेज में दाखिला मिलेगा या नहीं! जाहिर है, देश भर में स्कूली शिक्षा में संतुलन कायम करने और गुणवत्ता सुधारने के साथ ही डीयू जैसे और विश्वविद्यालय स्थापित करने और पहले से कायम इसी तरह के संस्थानों को महत्व देने की जरूरत है।


                                                                                                    साभार - अमर उजाला

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