हाल ही में हुए स्थानान्तरण को लेकर जिस तरह की चर्चाएं सभी जगह व्याप्त है तथा इस प्रकरण में स्थापित हुए आलौकिक शक्तिधारी अधिकारी को जिसे साबू के चारित्रिक नाम से विभूषित किया गया है ने केवल अपनी पदस्थापना का यह विलक्ष्ण कार्य किया है अपितु बडे सोच विचार के उपरान्त कमांऊ मंडल में अपने से समस्त वरिष्ठ अधिकारियों को स्थानान्तरित करा कर कनिष्ठ अधिकारियों को वहां भेजने में अहम भूमिका निभाई है तथा संपूर्ण स्थानान्तरण सूची में अपने प्रति निष्ठा रखने वाले सभी अधिकारियों को महत्वपूर्ण स्थानों पर स्थापित किया है ताकि समस्त प्रदेश में अपरोक्ष रूप से उन्हीं की भावना के अनुरूप निर्णय लागू हो सके। जिसे लेकर पूरे विभाग के अन्य अधिकारियों में रोष व्याप्त है तथा दबी जुबान से चर्चाएं भी हो रही है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विभाग के अधिकारियों को साबू के वरिष्ठ कद को निर्माण करने के मूल तत्वों की पहचान भी करनी चाहिए अतः उन्हें साबू के चरित्र के महत्वपूर्ण कारकों के कुछ तत्वों का परिचय दिया जा रहा है। जिससे अन्य अधिकारी भी नैतिक व अनैतिक का भेद कर कुछ तत्व अंगीकार कर सकें तथा साबू की निरकुंश कार्यशैली का विरोध करने में सक्षम हो सकें।
1. पत्रकारिता का कुछ अनुभव लें तथा मैत्रीपूर्ण पत्रकारिता के द्वारा अपने व्यक्तित्व के प्रचार में दक्षता।
2. कनिष्ठ होते हुए भी वरिष्ठता का भाव रखें (चूंकि सोच के अनुसार ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है)।
3. पद से इतर दम्भ के प्रदर्शन की कला सीखें ताकि अपने पास आने वाले को हीनभावना का एहसास कराने में दक्ष हो सकें।
4. कांग्रेस शासनकाल में कांग्रेस सेवा दल का महत्वपूर्ण कार्यकर्ता बनने की क्षमता विकसित करें।
5. भाजपा शासनकाल में आरएसएस का स्वंयसेवक तथा संघवर्ग में एक अच्छी संघ आयु का प्रदर्शन करना सीखें।
6. वैसे तो संभव नहीं है परंतु अन्य किसी दल की सत्ता आने पर उस दल के प्रमुख से अपनी रिश्तेदारी निकालने की विधा सीखें।
7. अपने से वरिष्ठ विभागीय अधिकारियों की अवज्ञा करना सीखें।
8. मुख्यतः विभागीय अधिकारियों के इतर राजनीतिक आकाओं/शासन व्यवस्था/प्रशासनिक अधिकारियों को ऐनकेन प्रकरेण नैतिक व अनैतिक के भेदरहित आवश्यकताओं की पूर्ति कर उनके प्रतिनिधि के रूप में स्वंय को स्थापित करने की कला में दक्षता प्राप्त करें।
विशेष रूप से उक्त बातों को नियमत् गलत होने पर भी वर्तमान में योग्यता का मापदंड माना जा रहा है जिससे हम सभी आहत है, परंतु मुखर होने का साहस नहीं जुटा पा रहें है, क्योंकि यह सत्य है कि बुराई का वर्चस्व अच्छाई की निष्क्रियता के कारण होता है। छोटी-छोटी बातों व प्रकरणों को भी आपके प्रिय अखबार में प्रकाशित करने में देर नहीं करने वाले सभी प्रिय अखबार इस प्रकरण पर चुप क्यों है यह सोचनीय प्रश्न है। साथ ही इस प्रकरण को लेकर भाजपा का तहसील स्तर तक का फैला हुआ संगठन भी निष्क्रिय दिख रहा है।
क्रमशः
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