हिंदी साहित्य में लंबे समय से पाठकों की कमी का रोना अक्सर साहित्यिक कृतियों के वितरण की कमियों से जोड़कर पेश किया जाता है। यह माना जाता है कि रचनाएं हिंदी के विशाल पाठक वर्ग तक पहुंच ही नहीं पाती हैं। लेकिन इंटरनेट के बढ़ते घनत्व ने पाठकों तक पहुंचने का एक बड़ा अवसर हिंदी के प्रकाशकों और लेखकों को उपलब्ध करवाया है। इसका फायदा उठाने की कोशिशें भी लगातार परवान चढ़ने लगी हैं। पहले डेली हंट नाम के एक एप पर साहित्यिक कृतियां बहुत सस्ते में सुलभ हुईं, फिर किंडल पर हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं की रचनाएं ई-बुक्स के फॉर्मेट में पेश की गईं। इस वैकल्पिक वितरण व्यवस्था ने हिंदी साहित्य के पारंपरिक वितरण व्यवस्था को मजबूती प्रदान की, ऐसा माना जाना चाहिए। साहित्यिक कृतियां उन लोगों तक पहुंचने लगीं, जो कंप्यूटर, टैब व स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे थे। चंद साल पहले सोशल मीडिया के बढ़ते कदम के मद्देनजर ‘मोबाइल फस्र्ट’ का सिद्धांत पेश किया गया था, पर अब वह ‘मोबाइल ओनली’ तक पहुंच गया है। लगभग सभी कंपनियां स्मार्टफोन की स्क्रीन साइज बढ़ा चुकी हैं। एप्पल जैसा पारंपरिक ब्रांड भी स्क्रीन साइज बढ़ाने को मजबूर हो गया। सोशल मीडिया में सक्रिय कंपनियों को हिंदी में अपार संभावनाएं नजर आईं। धीरे-धीरे सबने हिंदी को अपनाना शुरू किया। ट्विटर ने हैशटैग के लिए भी हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं को शामिल किया।
स्मार्टफोन के बढ़ते चलन से पाठकों या दर्शकों को चलते-फिरते पढ़ने-देखने की आदत बढ़ने लगी। बाजार की भाषा में कहते हैं कि उपभोक्ता ‘ऑन द मूव’ पढ़ना-देखना चाहता है। अब ऐसी कृतियों को देखने-पढ़ने का आधार यूजर का मूड हो गया। लेखकों का एक वर्ग इस मूड के हिसाब से भी लेखन करने लगा है। साहित्यिक कृतियों के बाजार और उस बाजार पर कब्जे को लेकर रणनीतियां बनने लगीं। हाल ही में एक नए प्रकाशक जॉगरनट ने हिंदी में अपना एप लॉन्च किया है। इस एप पर एक महीने तक साहित्यिक कृतियां मुफ्त में पढ़ी जा सकती हैं। बाकी ज्यादातर एप की तरह ही यह आई-फोन और एंड्रॉयड, दोनों पर उपलब्ध है। इस एप पर मौजूद सामग्री को देखकर इस बात का सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि साहित्य के जो एप बाजार में आ रहे हैं, उनकी रणनीति या यूं कहें कि बाजार नीति क्या है? इनमें कहानियों और छोटे उपन्यासों की भरमार तो है ही, साथ ही इनके विषय को देखें, तो ज्यादातर में यौन प्रसंगों को प्रमुखता दी गई है। रीतिकालीन प्रवृत्तियों को आधुनिकता के साथ प्रस्तुत कर पाठकों को बांधने की कोशिश इसमें दिखाई देती है। कहीं न कहीं यह माना जा रहा है कि इस तरह की कहानियों से उनके एप ज्यादा से ज्यादा डाउनलोड हो सकते हैं। यानी इस नए बाजार में भी सेक्स को ही सफलता की गारंटी मान लिया गया है।
डेली हंट ने सात-आठ साल पहले ही इसकी शुरुआत की थी, जहां बहुत सस्ती कीमत पर सुरेंद्र मोहन पाठक से लेकर फैज तक की कृतियां उपलब्ध थीं। लेकिन बाद में इसे अपना नाम बदलकर न्यूज हंट कर लिया और अब वह अखबारों व खबरों पर ही ज्यादा ध्यान दे रहा है। इसके अलावा, प्रतिलिपि का भी अपना एक एप है, जिस पर कहानियां व कविताएं पढ़ी जा सकती हैं।
ऑनलाइन उपलब्धता का बढ़ना साहित्य के लिए बेहतर स्थिति है। लेकिन अगर हम इसके अर्थशास्त्र पर बात करें, तो स्थिति बहुत अच्छी दिखाई नहीं देती है। आज के समय में एप बनवाना बहुत आसान है। उस एप को उपभोक्ताओं के मोबाइल पर डाउनलोड करवाना और फिर उसको उनके मोबाइल में बनाए रखना बेहद कठिन व चुनौतीपूर्ण काम है। एप को डाउनलोड करवाने का काम तो कंपनियां करवा रही हैं, लेकिन उसको बनाए रखने का कोई तंत्र अभी विकसित नहीं हो पाया है। इस लिहाज से देखें, तो साहित्यिक एप को पाठकों के मोबाइल या अन्य डिवाइस पर बनाए रखना बहुत ही मुश्किल है। अगर ये कंपनियां अपने एप को बनाए रखने में सफल रहती हैं, तो यह साहित्य के लिए बेहतर स्थिति होगी। इससे हिंदी साहित्य का दायरा बढ़ेगा और पुस्तकों के संस्करणों की घटती संख्या की भरपायी हो सकेगी। हिंदी साहित्य के लेखकों की पहुंच भी विशाल पाठक वर्ग तक हो सकेगी।
लेखक - अनंत विजय
साभार - दैनिक हिंदी हिंदुस्तान
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