ब्रिटेन के सार्वजनिक पुस्तकालय हर साल के शुरू में उन पुस्तकों की सूची निकालते हैं, जो पिछले वर्ष सबसे ज्यादा पढ़ी गईं। इससे लोगों की पढ़ने की रुचि का पता चलता है। 1979 में ब्रिटिश संसद ने ‘पब्लिक लेंडिंग राइट’ बिल पास किया था, जिसके अनुसार वहां के सार्वजनिक पुस्तकालयों द्वारा जारी की गई हर किताब पर हर बार के लिए उस पुस्तक के लेखक को कम से कम 7.82 पेंस (लगभग 65 रुपये) मिलते हैं। किसी भी लेखक को मिलने वाली यह राशि अधिकतम 6,600 पौंड है, जो प्रकाशक द्वारा दी जाने वाली रॉयल्टी से बिल्कुल अलग है। इसे एक प्रकार से लेखकों को उनकी पुस्तकों का उपयोग किए जाने का पुस्तकालयों द्वारा दिया जाने वाला ‘किराया’ कहा जा सकता है। कोई भी लेखक, जो ‘बेस्ट सेलिंग लेखक’ बनना चाहता है और इसके लिए पाठकों की नब्ज टटोलना चाहता है, तो वह ‘पब्लिक लेंडिंग राइट’ द्वारा घोषित आंकड़ों से पाठकों की रुचि का पता लगा सकता है। इसकी पूरी व्यवस्था ब्रिटेन के राष्ट्रीय पुस्तकालय ‘ब्रिटिश लायब्रेरी’ द्वारा की जाती है।
इस वर्ष के आंकड़ों से पता चलता है कि ब्रिटेन के सार्वजनिक पुस्तकालयों द्वारा पिछले वर्ष सबसे अधिक बार जासूसी-रोमांचक उपन्यास जारी हुए। इस सूची में जो पुस्तक सबसे ऊपर है, वह है पौला हॉकिन्स का उपन्यास द गर्ल ऑन द ट्रेन। दूसरे और तीसरे नंबर पर ली चाइल्ड के पर्सनल और मेक मी उपन्यास रहे। जिस एक लेखक की पुस्तकें सबसे अधिक बार निर्गत की गईं, वह हैं अमेरिकी रोमांचक उपन्यास लेखक जेम्स पेटरसन, जिनकी पुस्तकें 20 लाख से अधिक बार जारी की गईं। लेकिन बेस्ट सेलर सूची में आने के लिए जरूरी नहीं है कि केवल रोमांचक उपन्यास ही लिखे जाएं। पिछले वर्ष जो दस पुस्तकें सबसे अधिक बार जारी की गईं, उनमें चार तो ‘बाल साहित्य’ की श्रेणी की हैं। जेफ किनी की विंपी किड शृंखला की तीन पुस्तकें क्रमश: चौथे, पांचवें और आठवें नंबर पर रहीं और डेविड विलियम्स की ऑ-फुल आंटी नौवें नंबर पर। जिन दस लेखकों की पुस्तकें अधिक पढ़ी गईं, उनमें सात ‘बाल साहित्य’ लेखक हैं। नॉन फिक्शन में सबसे अधिक पुस्तकें पाक कला संबंधी रहीं। उसके बाद जीवनियां।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि ब्रिटेन के सार्वजनिक पुस्तकालय वहां के लोगों के लिए किस प्रकार महत्वपूर्ण हैं और वहां के लोग भी मानते हैं कि लोगों में पढ़ने की रुचि जागृत करने में वे बहुत सहायक हैं। लेखकों को भी इसके लिए आभारी होना चाहिए कि इससे न केवल लोगों की पढ़ने की रुचि को बढ़ावा मिलता है, वरन इसलिए भी कि इससे देश भर में लेखन के महत्व का पता चलता है। ‘पब्लिक लेंडिंग राइट’ सही अर्थों में पिछले वर्षों से एक सभ्य-शिष्ट समाज की इंडेक्स में ब्रिटेन की स्थिति का द्योतक भी कहा जा सकता है।
दूसरी तरफ, भारत के सभी शहरों में सार्वजनिक पुस्तकालय ही नहीं हैं। जहां हैं भी, वहां से पाठकों को पुस्तकें उसी प्रकार जारी नहीं की जातीं, जैसी की होनी चाहिए। वहां के पुस्तकालयों से इस प्रकार के आंकड़े मिलने की तो बात ही नहीं की जा सकती। फिर भी देश में सबसे बड़ा सार्वजनिक पुस्तकालय यूनेस्को के सहयोग से संचालित ‘दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी’ को माना जा सकता है। केवल वहां से जारी होने वाली पुस्तकों की ऐसी सूचनाएं मिल सकें, तो कम से कम राजधानी के लोगों की पढ़ने की प्रवृत्ति के बारे में तो पता चल ही सकता है।
दूसरी तरफ, ब्रिटेन में हजारों सार्वजनिक पुस्तकालय हैं और प्राय: सभी में हिंदी, पंजाबी, गुजराती, उर्दू, बांग्ला आदि भारतीय भाषाओं की पुस्तकें भी हैं, जो प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में पाठकों द्वारा पढ़ी जाती हैं, लेकिन उनके लेखकों को ‘पब्लिक लेंडिंग राइट’ का लाभ नहीं मिलता। ब्रिटेन में ये पुस्तकें प्रकाशित मूल्य की अपेक्षा सात-आठ गुना अधिक मूल्य पर खरीदी जाती हैं, पर लेखकों को या तो भारत में प्रकाशित मूल्य पर ही रॉयल्टी दी जाती है या बिल्कुल भी नहीं। इस प्रकार, उन पर दोहरी मार पड़ती है। यदि ‘पब्लिक लेंडिंग राइट’ में भारतीय भाषाओं की पुस्तकें भी शामिल कराई जा सकें, तो उनके लेखक भारत में मिलने वाली रॉयल्टी की अपेक्षा कई गुना अधिक राशि के हकदार बन सकते हैं।
लेखक - महेंद्र राजा जैन
साभार - दैनिक हिंदी हिंदुस्तान
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